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"पयाम आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले <br> | मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले <br> | ||
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जो देखना हो तो देखो नज़र उठा के मुझे<br><br> | जो देखना हो तो देखो नज़र उठा के मुझे<br><br> | ||
10:08, 15 जुलाई 2009 का अवतरण
पयाम<ref>निमंत्रण</ref> आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा<ref> वो मित्र जो वफ़ादार नहीं</ref>के मुझे
जिसे क़रार<ref>चैन</ref> न आया कहीं भुला के मुझे
जुदाइयाँ हों तो ऐसी कि उम्र भर न मिले
फ़रेब<ref>धोखा</ref>तो दो ज़रा सिलसिले बढ़ा के मुझे
नशे से कम तो नहीं याद-ए-यार <ref>मित्र के स्मरण का आलम</ref>का आलम
के ले उड़ा है कोई दोश<ref>काँधे</ref> पर हवा के मुझे
मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
उदास छोड़ गये आईना<ref>दर्पण</ref> दिखा के मुझे
तुम्हारे बाम<ref>छत</ref>से अब कम नहीं है रिफ़अते-दार<ref>सूली की ऊँचाई</ref>
जो देखना हो तो देखो नज़र उठा के मुझे
खिँची हुई है मेरे आँसुओं में इक तस्वीर
'फराज़' देख रहा है वो मुस्कुरा के मुझे
शब्दार्थ
<references/>