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"पयाम आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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खिँची हुई है मेरे आँसुओं में इक तस्वीर
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17:40, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

पयाम<ref>निमंत्रण</ref> आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा<ref> वो मित्र जो वफ़ादार नहीं</ref>के मुझे
जिसे क़रार<ref>चैन</ref> न आया कहीं भुला के मुझे

जुदाइयाँ हों तो ऐसी कि उम्र भर न मिले
फ़रेब<ref>धोखा</ref>तो दो ज़रा सिलसिले बढ़ा के मुझे

नशे से कम तो नहीं याद-ए-यार <ref>मित्र के स्मरण</ref> का आलम<ref>समय</ref>
कि ले उड़ा है कोई दोश<ref>काँधे</ref> पर हवा के मुझे

मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
उदास छोड़ गये आईना<ref>दर्पण</ref> दिखा के मुझे

तुम्हारे बाम<ref>छत</ref>से अब कम नहीं है रिफ़अते-दार<ref>सूली की ऊँचाई</ref>
जो देखना हो तो देखो नज़र उठा के मुझे

खिँची हुई है मेरे आँसुओं में इक तस्वीर
'फराज़' देख रहा है वो मुस्कुरा के मुझे

शब्दार्थ
<references/>