भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पयाम आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
फ़रेब<ref>धोखा</ref>तो दो ज़रा सिलसिले बढ़ा के मुझे <br><br>  
 
फ़रेब<ref>धोखा</ref>तो दो ज़रा सिलसिले बढ़ा के मुझे <br><br>  
  
नशे से कम तो नहीं याद-ए-यार <ref>मित्र के स्मरण का आलम</ref>का आलम <br>
+
नशे से कम तो नहीं याद-ए-यार <ref>मित्र के स्मरण</ref> का आलम<ref>समय
के ले उड़ा है कोई दोश<ref>काँधे</ref> पर हवा के मुझे <br><br>
+
</ref> <br>
 +
कि
 +
ले उड़ा है कोई दोश<ref>काँधे</ref> पर हवा के मुझे <br><br>
  
 
मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले <br>
 
मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले <br>

10:11, 15 जुलाई 2009 का अवतरण

पयाम<ref>निमंत्रण</ref> आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा<ref> वो मित्र जो वफ़ादार नहीं</ref>के मुझे
जिसे क़रार<ref>चैन</ref> न आया कहीं भुला के मुझे

जुदाइयाँ हों तो ऐसी कि उम्र भर न मिले
फ़रेब<ref>धोखा</ref>तो दो ज़रा सिलसिले बढ़ा के मुझे

नशे से कम तो नहीं याद-ए-यार <ref>मित्र के स्मरण</ref> का आलम<ref>समय </ref>
कि

ले उड़ा है कोई दोश<ref>काँधे</ref> पर हवा के मुझे 

मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
उदास छोड़ गये आईना<ref>दर्पण</ref> दिखा के मुझे

तुम्हारे बाम<ref>छत</ref>से अब कम नहीं है रिफ़अते-दार<ref>सूली की ऊँचाई</ref>
जो देखना हो तो देखो नज़र उठा के मुझे

खिँची हुई है मेरे आँसुओं में इक तस्वीर
'फराज़' देख रहा है वो मुस्कुरा के मुझे

शब्दार्थ
<references/>