भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पयाम आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे / फ़राज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पयाम<ref>निमंत्रण</ref> आये हैं उस यार-ए-बेवफ़ा<ref> वो मित्र जो वफ़ादार नहीं</ref>के मुझे
जिसे क़रार<ref>चैन</ref> न आया कहीं भुला के मुझे

जुदाइयाँ हों तो ऐसी कि उम्र भर न मिले
फ़रेब<ref>धोखा</ref>तो दो ज़रा सिलसिले बढ़ा के मुझे

नशे से कम तो नहीं याद-ए-यार <ref>मित्र के स्मरण का आलम</ref>का आलम
के ले उड़ा है कोई दोश<ref>काँधे</ref> पर हवा के मुझे

मैं ख़ुद को भूल चुका था मगर जहाँ वाले
उदास छोड़ गये आईनाref>दर्पण</ref> दिखा के मुझे

तुम्हारे बाम<ref>छत</ref> से अब कम नहीं है रिफ़अते-दार<ref>सूली की ऊँचाई</ref>
जो देखना हो तो देखो नज़र उठा के मुझे

खिँची हुई है मेरे आँसुओं में इक तस्वीर
'फराज़' देख रहा है वो मुस्कुरा के मुझे

शब्दार्थ
<references/>