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परिचय / प्रगति गुप्ता

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तुम्हारी आँखों में अक्सर
मैने एक प्रश्न घूमते देखा है...
कभी मैं भी बोलूं
तेरे मेरे रिश्ते का परिचय क्या है...
कुछ प्रश्नो के उत्तर कहाँ होते हैं,
छाँव और सकून
तेरे साथ होने से ही
मेरे साथ-साथ चलते हैं
अब परिभाषित भी करूँ तो कैसे
तेरे साथ जिये पलों से जुड़े भावों को,
जो शब्दों में बंधकर
कभी बहते ही नहीं है ...
चल रही साथ तेरे
निशब्द शान्त सी हरपल मै...
जो छाँव, सकून तेरे साथ से है,
वही इस साथ का परिचय
बाकी कुछ नहीं निःशेष है...