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परीशां रात / अमलेन्दु अस्थाना

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परीशां रात के माथे पर छलछला आईं हैं कुछ बूंदें,
आहटें भी हैं, खामोशी को दस्तक देती तेज-तेज धड़कनें,
कोई जीना चाहता है पूरी रात, लपक लेना चाहता है चांद,
अंधेरों की बांहों में मचल रहे हैं कुछ जुगनू,
मिटा देना चाहते हैं मन की दीवारों पर पुती कालिख,
प्यासे सन्नाटे को सरगम का इंतजार है,
वो चाहता है बजे घुंघरू और घूंघट से उम्मीदों की परी प्रकट हो,
लिपट जाए बेइंतहा सरगोशियों के साथ
अशेष चुंबन का उपहार लिए,
बेइंतहा प्यार करे, सोख ले पूरी रात, पूरा अंधेरा, धुंध छंटे
सुबह खिल उठे गुलमोहर, पलास और मन का अमलतास।।