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"परेशानी का आलम है परेशानी नहीं जाती / चाँद शुक्ला हादियाबादी" के अवतरणों में अंतर

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करूँ मैं लाख कोशिश उनकी  मनमानी नहीं जाती  
 
करूँ मैं लाख कोशिश उनकी  मनमानी नहीं जाती  
  
वोह मुझको तकते रहतें हैं मैं उनको तकता रहता हूँ  
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वो मुझको तकते रहते हैं मैं उनको तकता रहता हूँ  
 
कभी  दोनों तरफ से यह निगहेबानी नहीं जाती  
 
कभी  दोनों तरफ से यह निगहेबानी नहीं जाती  
  

14:00, 11 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

परेशानी का आलम है परेशानी नहीं जाती  
अब  अपनी शक्ल भी शीशे  में पहचानी नहीं जाती   

यहाँ आबाद  है  हर शैय खिलें हैं  फूल आँगन में 
मगर घर से हमारे क्यों यह वीरानी नहीं जाती 

कभी इकरार  करतें हैं कभी तकरार  होती  है 
हमारी बात  कोई भी मगर मानी नहीं  जाती

मैं मन की बात करता हूँ वोह अक्सर टाल जाते हैं
करूँ मैं लाख कोशिश उनकी  मनमानी नहीं जाती

वो मुझको तकते रहते हैं मैं उनको तकता रहता हूँ  
कभी  दोनों तरफ से यह निगहेबानी नहीं जाती

कभी मैं हँसता रहता हूँ कभी मैं रोता रहता हूँ  
करूँ मैं क्या मिरे दिल से पशेमानी नहीं जाती