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पर सहलाते / चंद्र रेखा ढडवाल

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तितली के
पर सहलाते
उसकी उँगलियों की पोरों पर
रंग आ जाते हैं
उन्मत्त-सा फिर-फिर
और उसकी हथेली पर
रह जाता है
बुच्चा-सा इक जीव