भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पल्लू की कोर दाब दाँत के तले / उमाकांत मालवीय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[उमाकांत मालवीय]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category: पल्लू की कोर दाब दाँत के तले]]
+
{{KKRachna
[[Category: उमाकांत मालवीय]]
+
|रचनाकार=उमाकांत मालवीय
 
+
}}
~*~*~*~*~*~*~*~
+
{{KKCatKavita}}
 
+
{{KKCatNavgeet}}
 
+
<poem>
 
+
 
पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
 
पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
 
 
कनखी ने किये बहुत वायदे भले ।  
 
कनखी ने किये बहुत वायदे भले ।  
 
 
  
 
कंगना की खनक  
 
कंगना की खनक  
 
 
पड़ी हाथ हथकड़ी ।  
 
पड़ी हाथ हथकड़ी ।  
 
 
पाँवों में रिमझिम की बेडियाँ पड़ी ।  
 
पाँवों में रिमझिम की बेडियाँ पड़ी ।  
 
 
 
 
सन्नाटे में बैरी बोल ये खले,  
 
सन्नाटे में बैरी बोल ये खले,  
 
 
हर आहट पहरु बन गीत मन छले ।  
 
हर आहट पहरु बन गीत मन छले ।  
 
 
  
 
नाजों में पले छैल सलोने पिया,  
 
नाजों में पले छैल सलोने पिया,  
 
 
यूँ न हो अधीर,  
 
यूँ न हो अधीर,  
 
 
तनिक धीर धर पिया ।  
 
तनिक धीर धर पिया ।  
 
 
 
 
बँसवारी झुरमुट में साँझ दिन ढले,  
 
बँसवारी झुरमुट में साँझ दिन ढले,  
 
+
आऊँगी मिलने मैं पिय दिया जले ।
आऊँगी मिलने में पिय दिया जले ।
+
</poem>

20:25, 13 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

पल्लू की कोर दाब दाँत के तले
कनखी ने किये बहुत वायदे भले ।

कंगना की खनक
पड़ी हाथ हथकड़ी ।
पाँवों में रिमझिम की बेडियाँ पड़ी ।
सन्नाटे में बैरी बोल ये खले,
हर आहट पहरु बन गीत मन छले ।

नाजों में पले छैल सलोने पिया,
यूँ न हो अधीर,
तनिक धीर धर पिया ।
बँसवारी झुरमुट में साँझ दिन ढले,
आऊँगी मिलने मैं पिय दिया जले ।