भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पल भर में ही नविश्ता-ए-क़िस्मत बदल गया / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:28, 4 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> पल भ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पल भर में ही नविश्ता-ए-क़िस्मत बदल गया
मंज़िल के पास पाँव हमारा फिसल गया

मेराजे-बेख़ुदी का ये आलम भी देखिए
अपना ही साया पास से हो कर निकल गया

राहे-फ़रार ढूँढ ली तेरे ख़याल ने
सदहा तजल्लियों को अँधेरा निगल गया

निकला तो ख़ुदकुशी के इरादे से था मगर
पलकों तक आ के अश्क़े-नदामत सँभल गया

खटका लगा हुआ था अजल का हयात में
देखा जो मर के मौत का खटका भी टल गया

देखा था आदमी कभी फिर सो गए थे हम
जागे तो देखते हैं कि इन्साँ बदल गया

क्या-क्या न हुस्ने फ़िक्रो-अमल दे गया हमें
क्या-क्या न था जो नूर के सांचे में ढल गया

आया है वक़्त वो न थी जिसकी उम्मीद ‘चाँद’
नूरे-सहर<ref>सुबह का प्रकाश</ref>को शाम का साया निगल गया

शब्दार्थ
<references/>