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"पवाड़ा / तुलसी रमण" के अवतरणों में अंतर

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आओ चले उस गाँव
 
आओ चले उस गाँव
 
जहाँ झड़ते अनायास  
 
जहाँ झड़ते अनायास  
पके फ़ल - डाल-डाल छाँव- छाँव  
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पके फल - डाल-डाल छाँव- छाँव  
चलो जीएं उस पेड़ की छाँव  
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चलो जीयें उस पेड़ की छाँव  
 
जिसका वह एक फल  
 
जिसका वह एक फल  
 
‘झाँणों- मनसा’  ने  
 
‘झाँणों- मनसा’  ने  
चखा था आधा-अधा
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चखा था आधा-आधा
 
रह गए थे देखते
 
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छूट गया था बीज   
 
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बीज -दर –बीज  
 
बीज -दर –बीज  
 
उगते रहे किनते ही शाखी
 
उगते रहे किनते ही शाखी
झडते रहे कितने फ़ल
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झड़ते रहे कितने फल
 
स्तब्ध रहा पहाड़ों का  
 
स्तब्ध रहा पहाड़ों का  
 
परस्पर टकराना
 
परस्पर टकराना
 
थक गया  
 
थक गया  
 
गाँव से गाँव  सुलगना   
 
गाँव से गाँव  सुलगना   
गूँजता रहा‘पवाड़ा’हर घाटी,गाँव-गाँव  
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गूँजता रहा ‘पवाड़ा’ हर घाटी,गाँव-गाँव  
  
 
काया हो जाओ  
 
काया हो जाओ  
तुम उस फ़ल की  
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तुम उस फल की  
  
 
बीज हो जाता हूँ मैं  
 
बीज हो जाता हूँ मैं  
 
और उगते रहें बार-बार
 
और उगते रहें बार-बार
घाटी-घाटी गाँव- गाँव
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घाटी-घाटी गाँव-गाँव
 
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01:30, 19 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

आओ चले उस गाँव
जहाँ झड़ते अनायास
पके फल - डाल-डाल छाँव- छाँव
चलो जीयें उस पेड़ की छाँव
जिसका वह एक फल
‘झाँणों- मनसा’ ने
चखा था आधा-आधा
रह गए थे देखते
छूट गया था बीज
उसी पेड़ की छाँव
बीज -दर –बीज
उगते रहे किनते ही शाखी
झड़ते रहे कितने फल
स्तब्ध रहा पहाड़ों का
परस्पर टकराना
थक गया
गाँव से गाँव सुलगना
गूँजता रहा ‘पवाड़ा’ हर घाटी,गाँव-गाँव

काया हो जाओ
तुम उस फल की

बीज हो जाता हूँ मैं
और उगते रहें बार-बार
घाटी-घाटी गाँव-गाँव