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पहला पानी गिरा गगन से
उमँड़ा उमड़ा आतुर प्यार,हवा हुई, ठंढे ठण्डे दिमाग के जैसे खुले विचार ।
भीगी भूमि-भवानी, भीगी समय-सिंह की देह,
भीगा अनभीगे अंगों की
प्राण-प्राणमय हुआ परेवा,भीतर बैठा, जीव,
भोग रहा है
द्रवीभूत प्राकृत आनंद आनन्द अतीव ।रूप-सिंधु सिन्धु की
लहरें उठती,
खुल-खुल जाते अंग,
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