भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पहली बूंद / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह |संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्...)
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह
 
|रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह
 
|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
 
|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
}}<poem>यह बादल की पहली बूंद कि यह वर्षा का पहला चुम्बन
+
}}
स्मृतियों के शीतल झोकों में झुककर कांप उठा मेरा मन।
+
{{KKCatGeet}}
 +
<poem>
 +
यह बादल की पहली बूँद कि यह वर्षा का पहला चुम्बन
 +
स्मृतियों के शीतल झोकों में झुककर काँप उठा मेरा मन।
  
बरगद की गंभीर बांहों से बादल आ आंगन पर छाए
+
बरगद की गभीर बाँहों से बादल आ आँगन पर छाए
झांक रहा जिनसे मटमैला थका चांद पत्तियां हटाए
+
झाँक रहा जिनसे मटमैला थका चाँद पत्तियाँ हटाए
नीची-ऊंची खपरैलों के पार शांत वन की गलियों में
+
नीची-ऊँची खपरैलों के पार शान्त वन की गलियों में
 
रह-रह कर लाचार पपीहा थकन घोल देता है उन्मन
 
रह-रह कर लाचार पपीहा थकन घोल देता है उन्मन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
+
::यह वर्षा का पहला चुम्बन।
  
पिछवारे की बंसवारी में फंसा हवा का हलका अंचल
+
पिछवारे की बँसवारी में फँसा हवा का हलका अंचल
खिंच-खिंच पडते बांस कि रह-रह बज-बज उठते पत्ते चंचल
+
खिंच-खिंच पडते बाँस कि रह-रह बज-बज उठते पत्ते चंचल
चरनी पर बांधे बैलों की तडपन बन घण्टियां बज रहीं
+
चरनी पर बाँधे बैलों की तड़पन बन घण्टियाँ बज रहीं
यह ऊमस से भरी रात यह हांफ रहा छोटा-सा आंगन
+
यह उमस से भरी रात यह हाँफ रहा छोटा-सा आँगन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
+
::यह वर्षा का पहला चुम्बन।
  
इसी समय चीरता तमस की लहरें छाया धुंधला कुहरा,
+
इसी समय चीरता तमस की लहरें छाया धुँधला कुहरा,
यह वर्षा का प्रथम स्वप्न धंस गया थकन में मन की, गहरा
+
यह वर्षा का प्रथम स्वप्न धँस गया थकन में मन की, गहरा
 
गहन घनों की भरी भीड मन में खुल गए मृदंगों के स्वर
 
गहन घनों की भरी भीड मन में खुल गए मृदंगों के स्वर
एक रूपहली बूंद छा गई बन मन पर सतरंगा स्पन्दन
+
एक रूपहली बूँद छा गई बन मन पर सतरंगा स्पन्दन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
+
::यह वर्षा का पहला चुम्बन।
 
</poem>
 
</poem>

20:27, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण

यह बादल की पहली बूँद कि यह वर्षा का पहला चुम्बन
स्मृतियों के शीतल झोकों में झुककर काँप उठा मेरा मन।

बरगद की गभीर बाँहों से बादल आ आँगन पर छाए
झाँक रहा जिनसे मटमैला थका चाँद पत्तियाँ हटाए
नीची-ऊँची खपरैलों के पार शान्त वन की गलियों में
रह-रह कर लाचार पपीहा थकन घोल देता है उन्मन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।

पिछवारे की बँसवारी में फँसा हवा का हलका अंचल
खिंच-खिंच पडते बाँस कि रह-रह बज-बज उठते पत्ते चंचल
चरनी पर बाँधे बैलों की तड़पन बन घण्टियाँ बज रहीं
यह उमस से भरी रात यह हाँफ रहा छोटा-सा आँगन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।

इसी समय चीरता तमस की लहरें छाया धुँधला कुहरा,
यह वर्षा का प्रथम स्वप्न धँस गया थकन में मन की, गहरा
गहन घनों की भरी भीड मन में खुल गए मृदंगों के स्वर
एक रूपहली बूँद छा गई बन मन पर सतरंगा स्पन्दन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।