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पहाड़ और समुद्र / सत्यनारायण स्नेही

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पहाड़ का आदमी
जब कभी जाता है समुद्र के पास
उसके ज़हन में तब भी होता है पहाड़
अविचल एकाकी खड़ा खामोश
नदियों का जन्मदाता
समुद्र का पिता ।
सागर की उमड़ती लहरों में
नज़र आता है उसे
हिमाच्छादित पहाड़
पहाड़ का आदमी देखता है
प्रकृति का विचित्र खेल
इस पृथ्वी पर पहाड़
सबसे ऊंचा होने पर भी
खामोश खड़ा है
समुद्र पानी से भरा है
फ़िर भी छलकता है
पहाड़ का आदमी
देख नहीं पाता
समुद्र की करामात
जिससे रंगते-सजते हैं पहाड़
बहती हैं नदियां
विकसित होता है जीवन
दरअसल
समुद्र से पहाड़ तक
तनी है पूरी धरती
जहां सदियों से
पहाड़ पर बैठा है समुद्र
समुद्र में तैर रहा है पहाड़
लगातार