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पाँच-पाँच पनवाँ के बिरवा त बिरवा सोहामन जी / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पाँच-पाँच पनवाँ के बिरवा<ref>पान का बीड़ा</ref> त बिरवा सोहामन जी।
अजी ननद, एहो बिरवा भइया जी के हाथे त मैया के मनावहु जी॥1॥
कि अजी भउजी, नाउन<ref>हजामिन</ref>, कि अजी भउजी, भाँटिन।
कि अजी भउजी, तोरा बाप के चेरिआ जी॥2॥
न एजी ननद, नाउन, न एजी ननद, भाँटिन।
न एजी ननद, मोरा बाप के चेरिया जी।
अजी ननद, मोरा प्रभु जी के बहिनी, ननद बलु<ref>बल्कि</ref> लगबऽ जी॥3॥
जुगवा खेलइते भइया, बेलतेरे, अउरो बबुरतरे जी।
अजी भइया, प्राण पेयारी मोर भउजिया, त केसिया<ref>माथे के केश</ref> भसमलोटे जी॥4॥
जुगवा छोरलन राजा बेलतरे, अउरो बबुरतरे जी।
कि अरे लाला, भाई चलले, गजओबर, कहू जी धनि कूसल हे॥5॥
लाज सरम केरा बात, कहलो न जाय, सुनलो न जाय।
कि अजी प्रभु, मरलों करमवा के पीरा<ref>पीड़ा</ref> त ओदर<ref>उदर</ref> चिल्हकि मारे हे॥6॥
कहितऽ त अजी धनियाँ, जिरवा<ref>जीरा</ref> के बोरसी भरइतों, लवँगिया के पासँघ<ref>सौरी घर के द्वार पर गोरखी में रखी आग, जो छठी तक जलती रहती है और इसमें लौंग आदि सुगन्धित द्रव्य भी जलाया जाता है</ref> जी।
कहितऽ त अजी धनियाँ, अपन अम्माँ के बोलइतों, रतिया सोहानन जी॥7॥
कहितऽ त अजी धनियाँ, सोए रहूँ, अउरो बइठि रहूँ।
अजी धनि, मानिक दीप बरएबों त रतिया सोहावन जी॥8॥
न कहुँ अजी प्रभुजी, सोए रहु, न कहुँ बइठि रहु।
अजी प्रभु, बुति<ref>बुझना</ref> जइहें मानिक दीप, रतिया भेयावन जी॥9॥
बुति जइहें जीरवा के बोरसी, लवंगिया के पासँघि जी।
अजी प्रभु, सोए जइहें तोहर अम्माँ, त रतिया भेयावन जी॥10॥
हम त जनति धनि, बिरही<ref>वियोग पैदा करने वाली</ref> बोलित, अउरो बिरही बोलित जी।
अजी धनि, लरिके मैं गवना करइती, विदेस चलि जइती, बिरही नहीं सुनती जी॥11॥

शब्दार्थ
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