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पाखी न पाती / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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46
जीवन-मरु
ये दो बोल तुम्हारे
देते जीवन ।
47
रिसता दर्द
पोर-पोर से नित
कोई न बाँटे।
48
ज्ञान अपार
कराए सागर पार
भाव -निर्मल ।
49
स्नेह-कसौटी
निश्छल व्यवहार
वही सद्गुरु ।
50
गुरु अनेक
परम प्रिय शिष्य
दुर्लभ एक ।
51
तमस् हरता
उजियारा करता
लोभ से दूर ।
52
वासना-पंक
जो डूबे हैं आकण्ठ,
गुरु कलंक ।
53
भेद जो करे
ऐसे गुरु कपटी
नरक भरें ।
54
शिष्य को छले
ऐसे गुरु से अच्छे
सौ पापी भले ।
55
मेरा संकल्प-
ज्ञान -स्नेह बाँटना
बने जीवन ।
56
तन चन्दन
मन हरसिंगार
झरता प्यार ।
57
स्वर्णिम रूप
जैसे सर्दी की धूप
लगे अनूप ।
58
दिल जो मिले
स्वर्गिक अनुभूति
टूटे बंधन।
59
पाखी न पाती
मिलेंगे कैसे अब
याद रुलाती ।
60
तुम दर्पण
खुद को निहारता
उदास मन ।