भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पानी / अनूप सेठी

Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:32, 23 जनवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} <poem> कुछ पुरानी सी इमारतों के पिछवाड़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ पुरानी सी इमारतों के पिछवाड़े
टूटी पाइपों से
बाथरूमों का पानी रिसता रहता है
नीचे कुछ लोग बाल्टियां अटाकर नहाते हैं

बगल में पटड़ियों पर
धड़धड़ाती रेलगाड़ियाँ गुज़रती रहती हैं
रेलगाड़ियों से हज़ार हज़ार आँखें
नहाते हुए लोगों को
पीछे छूटते दृश्यों की तरह देखती हैं

बँद बाथरूमों की बँद मोरियों से
मैल लेकर
पानी निकलता है
लिसलिस थका हुआ
नीचे खड़े लोग उसे थाम लेते हैं
शर्माते हुए पानी
फिर भी उनको नहलाता है

फिर मैल समेत पानी
इमारतों की नींवों में उतरता है
और पटड़ियों की जड़ों में जा बैठता है।
                           (1989)