भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पान-फूल / दिनेश कुमार शुक्ल

Kavita Kosh से
कुमार मुकुल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:08, 3 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |संग्रह=ललमुनियॉं की दुनिया }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पान-फूल काया में
पानी की माया में
हरी-भरी छाया में
थोड़ी गरबीली-सी
थोड़ी शरमीली-सी
लता पान की !

छप्पर पर घनी-घनी
छाई है बनी-ठनी
परवल के साथ-साथ
हँसती है पात-गात
लता शीतलता की
लता पान की !

खुलती कोंपल-कोंपल
चढ़ती जाती प्रतिपल
अपने ही रंग रची
बसती अपनी सुवास
रसती रसना के रस
पान-वल्लरी !

प्राणों से हींच-हींच
आँखों को सींच-सींच
पनवारी के दरपन में
खुद को निरख रही
चोरी-चोरी गोरी
प्राण-वल्लरी !