भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता के दिल में मां / अमलेन्दु अस्थाना

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:40, 30 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमलेन्दु अस्थाना |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस दिन बहुत उदास थी मां,
चापाकल के चबूतरे पर चुपचाप बैठी रही,
आसमान को काफी देर निहारती हुई एकटक,
मां को मां की याद आ रही थी,

और पिताजी ने मना कर दिया था
नानी के घर पहुंचाने से,
उस दिन फीकी बनी थी दाल,
कई दिनों तक मां-पिताजी के रिश्तों में
कम रहा नमक,

रोटियां पड़ी रहीं अधपकी सी,
घर लौटे बिना खाए लेटे रहे पिताजी,
उस दिन गर्म दूध हमें देते वक्त
टप से गिरे थे मां के आंसू,

और फट गया था सारा दूध रिश्तों की तरह,
उस दिन सुबह पिताजी का तकिया भी
भीगा हुआ सा मिला,
बहुत छोटा सा मैं उन दिनों समझ नहीं पाया था
रिश्तों की कशमकश,

आज जब मैंने रोक दिया बबली को मायके जाने से,
तब शायद समझ पाया, वो पुरुष मानसिकता नहीं थी पिताजी की,
दरअसल वो बहुत प्यार करते थे मां से,
नहीं रहना चाहते थे एक पल भी अलग,
और मुझे याद है, कुछ दिन बाद,

पिताजी मां और हमें छोड़ आए थे नानी के गांव,
और गर्मी छुट्टी बाद जब हम मामा संग लौटे,
शाम को चापाकल के उसी चबूतरे पर पिताजी मिले हमारा इंतजार करते हुए।।