भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पियारो कलम / मनीष कुमार गुंज

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:27, 18 सितम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमरोॅ पियारो-पियारो कलम
चलै छै जादे रूकै छै कम।

रंग-विरंगा, ललका हरका
कोय नै छोटो, सभ्भे बड़का
दुनियां के एकरा पर नाज
सब छाती पर एकरो राज
राम-रहीम लिखों या बम
हमरोॅ पियारो-पियारो कलम।

सब एकरोॅ सम्मान करै छै
सब एकरॉे गुणगान करै छै
एकरोॅ विना कहाँ कल्याण
यहाँ कराबै साँझ-विहान
एकरा में दुनिया के दम
हमरोॅ पियारो-पियारो कलम
चलै छै जादे रूकै छै कम।