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|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है
क्योंकि पिया दूर है न पास है।
बढ़ रहा शरीर, आयु घट रही,
चित्र बन रहा लकीर मिट रही,
आ रहा समीप लक्ष्य के पथिक,
राह किन्तु दूर दूर हट रही,
इसलिए सुहागरात के लिए
आँखों में न अश्रु है, न हास है।
ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है
क्योंकि पिया दूर है न पास है।
ज़िन्दगी न तृप्ति हैगा रहा सितार, तार रो रहा, न प्यास है<br>क्योंकि पिया दूर जागती है न पास है।<br>बढ़ नींद, विश्व सो रहा शरीर, आयु घट रही,<br>चित्र बन सूर्य पी रहा लकीर मिट रहीसमुद्र की उमर,<br>और चाँद बूँद बूँद हो रहा समीप लक्ष्य के पथिक,<br>राह किन्तु दूर दूर हट रहीइसलिए सदैव हँस रहा मरण,<br>इसलिए सुहागरात के लिए<br>आँखों में न अश्रु है, न हास सदा जनम उदास है।<br>ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है<br>क्योंकि पिया दूर है न पास है।<br><br>
गा रहा सितारबूँद गोद में लिए अंगार है, तार रो रहा,<br>जागती होठ पर अंगार के तुषार है नींद, विश्व सो रहा,<br>सूर्य पी रहा समुद्र की उमरधूल में सिंदूर फूल का छिपा,<br>और चाँद बूँद बूँद हो रहाफूल धूल का सिंगार है,<br>इसलिए सदैव हँस रहा मरण,<br>विनाश है सृजन यहाँइसलिए सदा जनम उदास सृजन यहाँ विनाश है।<br>ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है<br>क्योंकि पिया दूर है न पास है।<br><br>
बूँद गोद में लिए अंगार है,<br>होठ पर अंगार के तुषार है,<br>धूल में सिंदूर फूल का छिपा,<br>और फूल धूल का सिंगार है,<br>इसलिए विनाश है सृजन यहाँ<br>इसलिए सृजन यहाँ विनाश है।<br>ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है<br>क्योंकि पिया दूर है न पास है।<br><br> ध्यर्थ रात है अगर न स्वप्न है,<br>प्रात धूर, जो न स्वप्न भग्न है,<br>मृत्यु तो सदा नवीन ज़िन्दगी,<br>अन्यथा शरीर लाश नग्न है,<br>इसलिए अकास पर ज़मीन है,<br>इसलिए ज़मीन पर अकास है।<br>ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है<br>क्योंकि पिया दूर है न पास है।<br><br>
दीप अंधकार से निकल रहा,<br>क्योंकि तम बिना सनेह जल रहा,<br>जी रही सनेह मृत्यु जी रही,<br>क्योंकि आदमी अदेह ढल रहा,<br>इसलिए सदा अजेय धूल है,<br>इसलिए सदा विजेय श्वास है।<br>ज़िन्दगी न तृप्ति है, न प्यास है<br>
क्योंकि पिया दूर है न पास है।
</poem>
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