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"पियेगा छक के कोई, कोई घूँट भर को तरसेगा / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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पिएगा छक के कोई, कोई घूँट भर को तरसेगा
 
ये नूर पर तेरे चेहरे से यों ही बरसेगा
 
 
गले से लग के नहीं हिचकियाँ रुकेंगी अब
 
बरसने आया है बादल तो जमके बरसेगा
 
 
अभी तो राह में काँटे बिछा रहा है, गुलाब!
 
कभी ये बाग़ तुझे देखने को तरसेगा
 
<poem>
 

00:50, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण