भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीठ कोरे पिता-6 / पीयूष दईया

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 28 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मंज़र

शायद विस्मृति की त्रुटि है
जो मैं बाहर आ गया हूं

अस्पताल से
अपनी सांस जैसा असली

पिता खो कर

अजब तरह के आश्चर्य में
वेश्या जानती है जिसे

इन्सान जीवित के साथ सोता है
मुर्दे के साथ नहीं।