भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पीले गुलाब- 2 / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुधा गुप्ता }} Category: चोका <poem> -0- </poem>' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
[[Category: चोका]]
 
[[Category: चोका]]
 
<poem>
 
<poem>
 +
अरसे बाद
 +
भेजे किसी ने मुझे
 +
पीले गुलाब
 +
खिल उठी सुबह
 +
दिन मुस्काया
 +
बात-बेबात मन
 +
गुनगुनाया
 +
बड़े भले लगे वे
 +
पीले गुलाब
 +
जो किसी ने भेजे थे
 +
 +
युग बीते हैं
 +
बसी गुलाब गंध।
 +
हर साँस में
 +
याद आया वो दिन
 +
बचपन में
 +
एक साथ देखा था
 +
मैंने-तुमने
 +
एक पीला गुलाब
 +
चार हाथों ने
 +
झपट लेना चाहा
 +
अधीर मन
 +
अबोध बचपन
 +
था उतावला
 +
जागा सयाना पन
 +
आँखों-आँखों में
 +
कुछ .फैसला हुआ
 +
रुके थे हाथ
 +
गुलाब के पास जा
 +
सूँघा, सराहा
 +
डाली पै छोड़ दिया
 +
वापस मुड़े
 +
राहें भी जुदा हुईं
 +
यादों में बसा
 +
महकता रहा वो
 +
पीला गुलाब
 +
 +
कभी सोचा न था कि
 +
साँझ घिरेगी
 +
बिछुड़ेगा काफ़िला
 +
अकेला पन
 +
सूने चट्टान- दिन
 +
पाहन-रातें
 +
बिताए न बीतेंगे
 +
उखड़ी साँसें
 +
और यादों की टीस
 +
साथ गूँजेंगे
 +
एक बोझिल भोर
 +
विस्मय भरी
 +
सच था या कि स्वप्न!
 +
दो बूँद झरीं
 +
विदा-वेला में मिला
 +
आज पीला गुलाब!!
  
 
-0-
 
-0-
 
</poem>
 
</poem>

15:50, 21 मई 2012 का अवतरण

{KKGlobal}}

अरसे बाद
भेजे किसी ने मुझे
पीले गुलाब
खिल उठी सुबह
दिन मुस्काया
बात-बेबात मन
गुनगुनाया
बड़े भले लगे वे
पीले गुलाब
जो किसी ने भेजे थे

युग बीते हैं
बसी गुलाब गंध।
हर साँस में
याद आया वो दिन
बचपन में
एक साथ देखा था
मैंने-तुमने
एक पीला गुलाब
चार हाथों ने
झपट लेना चाहा
अधीर मन
अबोध बचपन
था उतावला
जागा सयाना पन
आँखों-आँखों में
कुछ .फैसला हुआ
रुके थे हाथ
गुलाब के पास जा
सूँघा, सराहा
डाली पै छोड़ दिया
वापस मुड़े
राहें भी जुदा हुईं
यादों में बसा
महकता रहा वो
पीला गुलाब

कभी सोचा न था कि
साँझ घिरेगी
बिछुड़ेगा काफ़िला
अकेला पन
सूने चट्टान- दिन
पाहन-रातें
बिताए न बीतेंगे
उखड़ी साँसें
और यादों की टीस
साथ गूँजेंगे
एक बोझिल भोर
विस्मय भरी
सच था या कि स्वप्न!
दो बूँद झरीं
विदा-वेला में मिला
आज पीला गुलाब!!

-0-