भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुनः चमकेगा दिनकर / अटल बिहारी वाजपेयी

Kavita Kosh से
Sumitkumar kataria (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 17:14, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण (हिज्जे)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज़ादी का दिन मना,
नई ग़ुलामी बीच;
सूखी धरती, सूना अंबर,
मन-आंगन में कीच;
मन-आंगम में कीच,
कमल सारे मुरझाए;
एक-एक कर बुझे दीप,
अंधियारे छाए;
कह क़ैदी कबिराय
न अपना छोटा जी कर;
चीर निशा का वक्ष
पुनः चमकेगा दिनकर।