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पुरानी कमीज़ / प्रयाग शुक्ल

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आया याद कुछ बरस

पहले का चेहरा

भरोसा, प्रेम

देखकर अपनी पुरानी कमीज़ को ।

रंग ठीक वही नहीं,

पर दिलाता याद

भरे-पूरे रंग की !


कितने दिन कौंध गए--

बंद पड़ी संदूक से

निकली

कमीज़ में !