भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पुराने ठाँव से रहती है लिपटी / विजय राही" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय राही |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:29, 25 मार्च 2020 के समय का अवतरण

पुराने ठाँव से रहती है लिपटी ।
ग़रीबी गाँव से रहती है लिपटी ।

हमारे खेत की मिट्टी है साहब !
हमेशा पाँव से रहती है लिपटी ।

इसे पानी से नफ़रत हो गई क्या?
ये मछली नाँव से रहती है लिपटी ।

वो मेरी जान है 'राही' जो मेरे,
बदन की छाँव से रहती है लिपटी ।