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"पुष्कर की इस आशा का अन्त नहीं / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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17:13, 5 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण
काँख में कलश दबाए तुम्हें तो कभी देखा नहीं
देखा नहीं जल भरकर आ रही हो
पुकुर घाट से ऊपर निकलकर...
००
सुनकर निश्चय ही हंसी से लोटपोट हो जाएँगे
इस ज़माने में, यह सब क्या हो रहा है ?
००
असल में पुकुर हूँ मैं,
कलश है मेरा प्रणय
हज़ार छेदों वाला
जल लेकर घर तक नहीं पहुँच पाएगा
गिर जाएगा सारा जल रास्ते में
००
तो भी सरोवर उसके दूसरे दिन भी
छलछल कर बहता रहेगा
तुम जल भरने आओगी
भर भी लोगी वह कलश
काँख में दबाओगी, दबाओगी ही
पुष्कर की इस आशा का कोई अन्त नहीं
सचमुच में कोई अन्त नहीं ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी