भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेड़ धरा कि शान / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:45, 21 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पौधे हैं क्यारी की शोभा,
पेड़ धरा कि शान।
ये सब अपने घर जैसे है,
मत समझो मेहमान।

पेड़ नहीं मृत पत्थर जैसे
इनमें होती जान।
प्राण वायु देकर करते ये,
दुनियाँ पर अहसान।

फल देते हैं, छाया देते,
ये हैं बड़े महान।
हैं ये पिता समान हमारे,
हम इनकी संतान।

ठीक समय पर बरसे पानी,
रखते इसका ध्यान।
लाते पकड़-पकड़ मेघों को,
खींच-खींच कर कान।