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"पेड़ / यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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22:54, 5 जुलाई 2007 का अवतरण


हम देखते हैं फूल ।

लिखता है पेड़ भी कुछ धूप में

शब्द रिसते हैं रंगों में ।


एक टहनी का कंठ फूटता है

चिड़िया ।


भुरभुरी मिट्टी, गीली मिट्टी

अचानक सुनती है कुछ

हम सुन नहीं पाते

अचरज से देखते उसे कुछ

सुनते हुए ।

(हज़ारों सालों की स्मृति)


कोशिश करते हम भी ।

कोशिश है कविता ।