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"पेड़ / यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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हम देखते हैं फूल ।
 
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लिखता है पेड़ भी कुछ धूप में
 
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शब्द रिसते हैं रंगों में ।
 
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एक टहनी का कंठ फूटता है
 
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चिड़िया ।
 
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भुरभुरी मिट्टी, गीली मिट्टी
 
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अचानक सुनती है कुछ
 
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हम सुन नहीं पाते
 
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अचरज से देखते उसे कुछ
 
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सुनते हुए ।
 
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(हज़ारों सालों की स्मृति)
 
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कोशिश करते हम भी ।
 
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कोशिश है कविता ।
 
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11:35, 1 जनवरी 2009 का अवतरण

हम देखते हैं फूल ।
लिखता है पेड़ भी कुछ धूप में
शब्द रिसते हैं रंगों में ।

एक टहनी का कंठ फूटता है
चिड़िया ।

भुरभुरी मिट्टी, गीली मिट्टी
अचानक सुनती है कुछ
हम सुन नहीं पाते
अचरज से देखते उसे कुछ
सुनते हुए ।
(हज़ारों सालों की स्मृति)

कोशिश करते हम भी ।
कोशिश है कविता ।