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पेड़ / शरद बिलौरे

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आज जब मैं
अपने टूटने के क्षणों में
पेड़ की टूटती डालियों को महसूस करता हूँ
तो बातें
ज़्यादा साफ़ और तर्कसंगत लगने लगती हैं।
पेड़ जो धरती और आकाश से
बराबर-बराबर अनुपात में जुड़ा है
अपनी पत्तियों में आकाश समेटे
जड़ तक पहुँचते-पहुँचते
धरती हो जाता है।
हवा, धूप और धूल का
एक जैसा स्वागत करता
चींटियों और चिड़ियों के रिश्ते में बंधा
अपने अस्तित्व के लिए
धरती में उबलते लावे के नज़दीक
खड़ा पेड़।
तुम कभी इतिहास के भीतर जाओ
और
किसी आदमी के पेड़ होने की कथा पढ़ो
तो समझना
वह मेरे वंश की उत्पत्ति का युग था।