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"पैंसिल / ज्यून तकामी" के अवतरणों में अंतर

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बहुत उदास है पैंसिल...
 
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मेरी सब कविताओं की माँ है वो
 
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पैंसिल ! ओ पैंसिल !
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मेरे लिए घिस दिया तूने अपना शरीर
 
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सारा जीवन चाकू की झेली तूने पीर
 
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मरने से पहले भी हुई न अधीर
 
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आत्मत्यागी है तू जैसे कोई फकीर
 
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ओ पैंसिल मेरी !
 
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मन में है मेरे विचार कुछ ऎसा
 
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कि बन जाऊँ मैं बिल्कुल तुझ जैसा ।
  
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'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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01:52, 8 जनवरी 2012 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: ज्यून तकामी  » संग्रह: पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं सब
»  पैंसिल

बहुत उदास है पैंसिल...

दूर नहीं रही मुझ से कभी जो
मेरी सब कविताओं की माँ है वो
अब घिस गई...

पैंसिल ! ओ पैंसिल !
मेरे लिए घिस दिया तूने अपना शरीर
सारा जीवन चाकू की झेली तूने पीर
मरने से पहले भी हुई न अधीर
आत्मत्यागी है तू जैसे कोई फकीर

ओ पैंसिल मेरी !
मन में है मेरे विचार कुछ ऎसा
कि बन जाऊँ मैं बिल्कुल तुझ जैसा ।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय