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पैंसिल / ज्यून तकामी

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»  पैंसिल

बहुत उदास है पैंसिल...


दूर नहीं रही मुझ से कभी जो

मेरी सब कविताओं की माँ है वो

अब घिस गई...


पैंसिल ओ पैंसिल !

मेरे लिए घिस दिया तूने अपना शरीर

सारा जीवन चाकू की झेली तूने पीर

मरने से पहले भी हुई न अधीर

आत्मत्यागी है तू जैसे कोई फकीर


ओ पैंसिल मेरी !

मन में है मेरे विचार कुछ ऎसा

कि बन जाऊँ मैं बिल्कुल तुझ जैसा ।