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प्याज़ की एक गाँठ / भगवत रावत

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  • प्याज़ की एक गाँठ / भगवत रावत

चार रुपये किलो प्याज
आवाज़ लगाई
बशीर भाई ने

मैं चौंका
वे हँसकर बोले
ले जाइये साहब
हफ्ते भर बाद
यही भाव याद आयेगा
अल्लाह जाने
यह सिलसिला
कहाँ तक जायेगा

जेब में हाथ डालते हुए
मैंने कहा
आधा किलो

सुनकर बशीर भाई कुछ बोले नहीं
और एक की जगह
आधा किलो तौलते हुए मेरे लिए
ऐसा लगा
जैसे कुछ मुश्किल में पड़ गए
उनकी तराजू का
भारी वाला पलड़ा
हमेशा की तुलना में
आज कुछ कम नीचे झुका

प्याज की एक गाँठ
और उतारें या न उतारें
इस सोच में
उनका हाथ
ग्राहक से रिश्ता तय करता था
एक क्षण को
हवा में रुका
और आखिरकार
बशीर भाई जीत गए

मैं रास्ते भर
झोले में डाली
प्याज की उस एक गाँठ को
आँखों में लिए-लिए
घर लौटा।