"प्यार की राह में ऐसे भी मकाम आते हैं/ क़तील" के अवतरणों में अंतर
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प्यार की राह में ऐसे भी मक़ाम आते हैं | | प्यार की राह में ऐसे भी मक़ाम आते हैं | | ||
सिर्फ आंसू जहाँ इन्सान के काम आते हैं || | सिर्फ आंसू जहाँ इन्सान के काम आते हैं || | ||
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उनकी आँखों से रखे क्या कोई उम्मीद-ए-करम | | उनकी आँखों से रखे क्या कोई उम्मीद-ए-करम | | ||
प्यास मिट जाये तो गर्दिश में वो जाम आते हैं || | प्यास मिट जाये तो गर्दिश में वो जाम आते हैं || | ||
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ज़िन्दगी बन के वो चलते हैं मेरी सांस के साथ | | ज़िन्दगी बन के वो चलते हैं मेरी सांस के साथ | | ||
उनको ऐसे भी कई तर्ज़-ए-खराम आते हैं || | उनको ऐसे भी कई तर्ज़-ए-खराम आते हैं || | ||
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हम न चाहें तो कभी शाम के साए न ढलें | | हम न चाहें तो कभी शाम के साए न ढलें | | ||
हम तड़पे हैं तो सुबहों के सलाम आते हैं || | हम तड़पे हैं तो सुबहों के सलाम आते हैं || | ||
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कुव्वत-ए-दस्त-ए-तलब का नहीं जिन को इदराक | | कुव्वत-ए-दस्त-ए-तलब का नहीं जिन को इदराक | | ||
तेरे दर से वही बे-नील मराम आते हैं || | तेरे दर से वही बे-नील मराम आते हैं || | ||
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मुंह छुपा लेते हैं ग़म हज़रात-ए-नासेह की तरह | | मुंह छुपा लेते हैं ग़म हज़रात-ए-नासेह की तरह | | ||
जब भी मैखाने में रिंदान-ए-कराम आते हैं || | जब भी मैखाने में रिंदान-ए-कराम आते हैं || | ||
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हम पे हो जाएँ न कुछ और भी रातें भारी | | हम पे हो जाएँ न कुछ और भी रातें भारी | | ||
याद अक्सर वो हमें अब सर-ए-शाम आते हैं || | याद अक्सर वो हमें अब सर-ए-शाम आते हैं || | ||
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छिन गए हम से जो हालात की राहों में क़तील | | छिन गए हम से जो हालात की राहों में क़तील | | ||
उन हसीनों के हमें अब भी पयाम आते हैं || | उन हसीनों के हमें अब भी पयाम आते हैं || | ||
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05:23, 16 फ़रवरी 2010 के समय का अवतरण
प्यार की राह में ऐसे भी मक़ाम आते हैं |
सिर्फ आंसू जहाँ इन्सान के काम आते हैं ||
उनकी आँखों से रखे क्या कोई उम्मीद-ए-करम |
प्यास मिट जाये तो गर्दिश में वो जाम आते हैं ||
ज़िन्दगी बन के वो चलते हैं मेरी सांस के साथ |
उनको ऐसे भी कई तर्ज़-ए-खराम आते हैं ||
हम न चाहें तो कभी शाम के साए न ढलें |
हम तड़पे हैं तो सुबहों के सलाम आते हैं ||
कुव्वत-ए-दस्त-ए-तलब का नहीं जिन को इदराक |
तेरे दर से वही बे-नील मराम आते हैं ||
मुंह छुपा लेते हैं ग़म हज़रात-ए-नासेह की तरह |
जब भी मैखाने में रिंदान-ए-कराम आते हैं ||
हम पे हो जाएँ न कुछ और भी रातें भारी |
याद अक्सर वो हमें अब सर-ए-शाम आते हैं ||
छिन गए हम से जो हालात की राहों में क़तील |
उन हसीनों के हमें अब भी पयाम आते हैं ||