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प्यार मुझको भावना तक ले गया / डी. एम. मिश्र
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प्यार मुझको भावना तक ले गया
भावना को वन्दना तक ले गया।
रूप आँखों में किसी का यूँ बसा
अश्रु को आराधना तक ले गया।
दर्द से रिश्ता कभी टूटा नहीं
पीर को संवेदना तक ले गया।
हारना मैने कभी सीखा नहीें
जीत को संभावना तक ले गया।
मैं न साधक हूँ , न कोई संत हूँ
शब्द को बस साधना तक ले गया।
अब मुझे क्या और उनसे चाहिए
एक पत्थर ,प्रार्थना तक ले गया।