भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रणाम! / तोरनदेवी 'लली'

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:57, 21 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तोरनदेवी 'लली' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सादर सस्नेह प्रणाम आज, उन चरणों में शतकोटिवार!
माता के लाल लड़ैते थे,
भगिनी के वीर बाँकुरे थे,
सौभाग्यवान जीवन के थे,
जीवन थे प्राण-पियारे थे।
वे सब की भावाी आशा थे, थे जन्मभूमि के होनहोर!!
वे देश-प्रेम मतवाले थे,
माता के चरण-पुजारी थे,
पुरुषों मंे थे वे पुरुष-सिंह,
कर्त्तव्य-धर्म-ब्रत-धारी थे!
प्राणों को हँसकर छोड़ दिया, पर प्राण न तजा अपना अपार!!
वे ज्ञानवान थे, योगी थे,
अनुपम त्यागी थे, सज्जन थे,
वे वीर हठीले सैनिक थे,
तेजस्वी थे, विद्वज्जन थे!
कर्त्तव्य-कर्म की ओर बढ़े, फल की सारी सुध-बुध बिसार!!
तम-पूर्ण निशा में ज्योति हुए,
पथ-दर्शक कंटकमय मग के,
मरकर भी हैं वे अमर बने,
आदर्श हुए भावी जग के!
मंगलमय था बलिदान और वे थे भारतमाँ के शृँगार!
सादर सस्नेह प्रणाम आज, उन चरणों में शतकोटिवार!!