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"प्रतिध्वनि / महमूद दरवेश" के अवतरणों में अंतर

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22:39, 13 जून 2018 के समय का अवतरण

जैतून की छाया में
गूँज रहा है जीवन
और मैं
लटका हूँ अलाव के ऊपर
ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ

जल्लाद
खिलखिला रहे हैं
हँस रहे हैं वहशी हँसी
अपने लम्बे टेढ़े नाख़ूनों से
छील रहे हैं मेरा हृदय
और मैं
बेतहाशा चीख़ रहा हूँ
घोषणा कर रहा हूँ जीवन की —
कि अभी जीवित हूँ मैं

ऐ आसमान !
इन हिंसक तख़्तों पर
प्रहार कर तू
बुझा दे यह जालिम आग
अपनी पवित्र बौछार से
बदल दे इसे धुएँ में
अदृश्य कर दे इसे

और तब
तब मैं इस धरती का बेटा
उतरूँगा इस सलीब से
और लौटूँगा अपनी मातृभूमि पर
चलता हुआ नंगे पैर

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय