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प्रधानाचार्य जी / निशान्त

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प्रधानाचार्य जी
आप तो सख्ती करते
छात्रों के हित के लिए ही
फिर भी छात्र तो रहते
नाखुश ही
क्या वे नासमझ हैं
लेकिन इतनी बड़ी उम्र में
ना समझी वाली बात तो
कोई लगती नहीं
शायद है कमी आप मंे ही
जैसे कि छात्र हो गया
दो मिनट लेट तो
आप लगा देते हैं
झट से ‘ऐबसेन्ट’
या कि किसी कारणवश
छोड़ दे स्कूल पहले
तो करते हो दण्डित
अब कोई वर्दी भी
न आ सके पहनकर
तो भी आप तो होते हो
क्रोधित
आपके क्रोध का तो
क्या ठिकाना
निकल आए अगर कोई
पल भर बरामदे में ही
या फिर हो सकता है
कमी हो तुम्हारी उस शिक्षा में ही
जिसें तुम देना चाहते हो उन्हें
आप कह सकते हो
फिर वे क्यों आते हैं
स्कूल ही
हो सकता है
स्कूल आना
हो उनका एक शगल ही
जिन्दगी में
कितने-कितने शगल तो पालते हैं लोग
फिर वे पाले हुए हैं एक शगल तो क्या
क्या तुम्हारी यह सख्ती भी
तुम्हारा एक शगल नहीं।