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प्रभात अब (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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प्रभात अब (कविता का अंश)
अब प्रभात के गान, सृष्टि व्यापी प्रभात के
होते हैं एकत्रित मेरे पूर्व गगन में,
इस दिगंत व्यापी विषाद की सुदृढ़ कालिमा
तोड़ सहस्त्रों द्वारों से वे निकल पडे़गें।
प्रलय वेग से करते नभ की मुक्त अन्चतम
गिरि शिखरों को जाग्रत और ध्वनित नदियों को
(प्रभात अब कविता से )