भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रभुता के घर जन्मे / मुकुट बिहारी सरोज

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:19, 29 अगस्त 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं

प्रभुता के घर जन्मे समारोह ने पाले हैं
इनके ग्रह मुँह में चाँदी के चम्मच वाले हैं
उद्घाटन में दिन काटे, रातें अख़बारों में,
ये शुमार होकर ही मानेंगे अवतारों में

ये तो बड़ी कृपा है जो ये दिखते भर इंसान हैं ।
इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं ।

दन्तकथाओं के उद्गम का पानी रखते हैं
यों पूँजीवादी तन में मन भूदानी रखते हैं
होगा एक तुम्हारा इनके लाख-लाख चेहरे
इनको क्या नामुमकिन है ये जादूगर ठहरे

इनके जितने भी मकान थे वे सब आज दुकान हैं ।
इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं ।

ये जो कहें प्रमाण करें जो कुछ प्रतिमान बने
इनने जब-जब चाहा तब-तब नए विधान बने
कोई क्या सीमा नापे इनके अधिकारों की
ये खुद जन्मपत्रियाँ लिखते हैं सरकारों की

तुम होगे सामान्य यहाँ तो पैदाइशी प्रधान हैं ।
इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं ।