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प्रयाण गीत / प्रताप नारायण सिंह

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हुआ जो अल्प भान शत्रु मातृ-भूमि पर अड़ा ।
स्वराष्ट्र ध्वज लिए सवेग सैन्य-दल निकल पड़ा।।
असीम शौर्य से भरे, अदम्य साहसी सभी।
बढ़े चलें सपूत देश के, नहीं रुकें कभी।।

अनेक अस्त्र-शस्त्र देह पर सजे गुमान से।
कि ब्याहने चले विजय-दुल्हन अपूर्व शान से।।
असीस कोटि कोटि उच्च भाल पर चमक रहे ।
प्रतप्त स्वर्ण से मुखारविंद हैं दमक रहे ।।

किरन किरन पुलक सगर्व आरती उतारती।
अशेष स्नेह-युक्त नेत्र से धरा निहारती।।
सुमन सुमन विनत प्रवीर पंथ जिस गमन करें।
कृतज्ञ चर अचर समस्त, वीर को नमन करें।।

चले महान राष्ट्र की अखंड आन के लिए।
बढ़े प्रतिज्ञ देशभक्त स्वाभिमान के लिए।।
गुबार पद-प्रहार के उठें अधिक पहाड़ से।
निनाद घोष के प्रचंड, सिंह की दहाड़ से।।

बिसार सुत, सुता, प्रिया, स्वबंधु, मात, तात को।
विमुक्त मोह से, लिए प्रदीप्त प्राण-गात को।।
महान कार्य पर चले समस्त आज वारने।
चले सुवीर ऋण पुनीत-मात का उतारने।।