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प्रेम कविताएँ - 4 / मंजरी श्रीवास्तव

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कितना रहस्यमय, सम्मोहक और जादुई है तुम्हारा प्रेम
बिल्कुल किसी स्त्री के रूप और सौन्दर्य की तरह
जो कभी खुलकर सामने आ जाता है
और कभी सौ परदों के पीछे छुप जाता है ।
जिसे केवल छुआ भर जा सकता है
प्यार से...पवित्रता से...
उसे व्याख्यायित करने की कोशिश के साथ ही
वह भाप की बूँद-सा ग़ायब हो जाता है ।

कभी-कभी मृत्यु से अधिक दर्दभरे मौन की तरह महसूस हुआ है मुझे तुम्हारा प्यार
मैं उसकी मौन वेदना की अनुगूँज सुनती रही हूँ लम्बी अवधि तक
वैसे ही
जैसे चेतन में मृत और अवचेतन में जीवित कोई व्यक्ति
महसूस कर पा रहा हो फूलों की सुगन्ध को
कोयल की कूक को
बुलबुल के गीत को
झरने की आह को
जैसे बेड़ियों में जकड़े किसी क़ैदी के मन ने पीछा किया हो
सुबह की शीतल, मन्द बयार का
जैसे रेगिस्तान के बीचोंबीच भूखे होने पर भी
रोटी लेने से इनकार कर दे कोई पागल, कोई दीवाना ।

तुम्हारा यह मौन प्रेम
कभी मृत्यु का एहसास कराता है और कभी एक विशिष्ट संगीत बनकर
मुझे ख़्वाबों से परे किसी दुनिया में ले जाता है ।
अपनी ही धडकनें सुनवाता है ।
अपने विचारों और भावों के साँचे को आँखों के सामने साकार करके दिखाता है ।
यह मौन अनकही बातों से हमारी रूहों को रोशन करता है
यह मौन हमें ख़ुद से अलग करके आत्मा के आकाश में विचरण करवाता है ।
यह एहसास कराता है कि जिस्म एक कारागार से ज़्यादा कुछ नहीं
और यह दुनिया तो देशनिकाला मात्र है ।

तुम्हारे मौन में मैं सोई हुई प्रकृति की धड़कनों की आवाज़ें सुनती हूँ
और नीला आकाश हमारे मौन पर स्वीकृति की मुहर लगाता है ।

बहुत दिनों तक यह लगता रहा कि
तुममें जादू, सौन्दर्य और सम्मोहन है
और तुम भी लम्बे समय तक ऐसा ही महसूस करते रहे
बहुत देर से पता चला कि दरअसल यह जादू, सौन्दर्य और सम्मोहन
हम दोनों के ही भीतर था अपना-अपना
तभी एक-दूसरे का प्यार और उसमें लिपटी यह दुनिया
हमें तिलिस्मी और सम्मोहक नज़र आती थी ।

जानते हो....
तुम्हारे चुम्बनों की मिठास और मेरे आँसुओं का खारापन
रोज़ एक नए और जीवनरक्षक प्रेम की उत्पत्ति करता है ।