प्रेम को न दान दो, न दो दया,
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है।
प्रेम है कि ज्योति-स्नेह एक है,
प्रेम है कि प्राण-देह एक है,
प्रेम है कि विश्व गेह एक है,
प्रेमहीन गति, प्रगति विरुद्ध है।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥
प्रेम है इसीलिए दलित दनुज,
प्रेम है इसीलिए विजित दनुज,
प्रेम है इसीलिए अजित मनुज,
प्रेम के बिना विकास वृद्ध है।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥
नित्य व्रत करे नित्य तप करे,
नित्य वेद-पाठ नित्य जप करे,
नित्य गंग-धार में तिरे-तरे,
प्रेम जो न तो मनुज अशुद्ध है।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥