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वेदों की ऋचा-सा प्रेम अपना मधुर ध्वनि में इसको गाना अक्षर-अक्षर पावन मन्त्रों- सा आँख मूँद हमें है जपते जाना गंगाजल-सा शीतल मन हैऔर दीप्त शिखा-सा मेरा तन है पत्र-पुष्प काँटों में से चुनती हूँ जीवन विरह का आँगन-उपवन है भगवद्गीता के अमृत-रस-साघूँट-घूँटकर तुम पीते जाना वचन-वचन पावन श्लोकों-सा तर्कों में इसको न उलझाना तुमने कानों में रस घोलाहोंठों पर मुस्कान सजाई रोम-रोम प्रियतम बोला कामनाओं ने ली अँगड़ाई उपनिषदों के तत्त्वमसि-सा साँस-साँस तुम्हें रटते जाना तुम चाहो इसको जो समझोमैंने तुम्हें परब्रह्म-सा माना 
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