भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेरणा के गीत / संगम मिश्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:16, 16 दिसम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगम मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाधक केवल निष्क्रियता है
जो भर देती उर में संशय।
जीवन में क्रियाशील रहकर
नर पा सकता सर्वत्र विजय॥

उड़ने के पहले क्यों डरकर
करते हो नभ का सीमाङ्कन।
पाँखें फैलाओ दृढ़ होकर
लघु हो जायेगा सर्व गगन।
जल क्रीड़ा निर्भर करती है
सुगठित बलवती भुजाओं पर।
क्यों व्यर्थ जलधि की गहरायी
सुनकर डर जाता अन्तर्मन।

पर्वत का शीश झुका देती,
मनुजों में है वह शक्ति अजय।
जीवन में क्रियाशील रहकर
नर पा सकता सर्वत्र विजय॥

सागर के सँग संग्राम किया
तब महाद्वीप का तट पाया।
नभ की रोमाञ्चक यात्रा ने
चन्दा तारों तक पहुँचाया।
बाधायें भी उतनी दुष्कर
जितना दुर्धर्ष लक्ष्य होता।
साधक को नहीं डरा सकती
निष्फलता की काली छाया।

जिज्ञासा ने सब देशों का
आपस में करवाया परिचय।
जीवन में क्रियाशील रहकर
नर पा सकता सर्वत्र विजय॥

जिसने असाध्य को साध्य किया
या जो सबके आदर्श बने।
नित उनके ज्ञानचक्षुओं में
फलते थे फलदायक सपने।
इतिहास सुशोभित है अगणित
विस्मयकारी घटनाओं से।
शासन था एकक्षत्र जिनका
माताओं ने वे शूर जने।

कोई भी लक्ष्य अप्राप्य नहीं
आवश्यक मन का दृढ निश्चय।
जीवन में क्रियाशील रहकर
नर पा सकता सर्वत्र विजय॥

बाधक केवल निष्क्रियता है
जो भर देती उर में संशय।
जीवन में क्रियाशील रहकर
नर पा सकता सर्वत्र विजय॥