भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ-2 / मनीषा पांडेय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:06, 12 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीषा पांडेय }} प्यार में डूबी हुई लड़कियों से सब डरत...)
प्यार में डूबी हुई लड़कियों से
सब डरते हैं
डरता है समाज
माँ डरती है,
पिता को नींद नहीं आती रात-भर,
भाई क्रोध से फुँफकारते हैं,
पड़ोसी दांतों तले उंगली दबाते
रहस्य से पर्दा उठाते हैं...
लड़की जो तालाब थी अब तक
ठहरी हुई झील
कैसे हो गई नदी
और उससे भी बढ़कर आबशार
बांधे नहीं बंधती
बहती ही जाती है
झर-झर-झर-झर।