भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फिर-फिर वही धुन लेकर यों किसने पुकारा है! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
 
एक जान हमारी है, एक जान से प्यारा है
 
एक जान हमारी है, एक जान से प्यारा है
  
उलझा था कभी इसमें आँचल तो गुलाब! उनका  
+
उलझा था कभी इसमें आँचल तो, गुलाब, उनका  
 
अब डाल का काँटा ही जीने का सहारा है
 
अब डाल का काँटा ही जीने का सहारा है
 
<poem>
 
<poem>

00:54, 9 जुलाई 2011 का अवतरण


फिर-फिर वही धुन लेकर यों किसने पुकारा है!
लगता है उन आँखों में रुकने का इशारा है

यादें ही ग़नीमत हैं इन प्यार की राहों में
बिछुड़े हुए साथी से मिलना न दुबारा है

हम डाँड़ चलाते हैं, तुम पार लगा देना
यह काम हमारा था, वह काम तुम्हारा है

क्या प्यार को समझे हम, क्या रूप को देखें हम
एक जान हमारी है, एक जान से प्यारा है

उलझा था कभी इसमें आँचल तो, गुलाब, उनका
अब डाल का काँटा ही जीने का सहारा है