भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर उदासी / पूर्णिमा वर्मन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:47, 18 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूर्णिमा वर्मन }} फिर उदासी की दरारों से कोई झाँकेगा ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


फिर उदासी की दरारों से

कोई झाँकेगा

कहेगा

आँख धो लो

जल्द ही सूरज को आना है ।